बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल को बहुत पसंद करता था। बीरबल की बुद्धि के आगे बड़े-बड़ों की भी कुछ नहीं चल पाती थी। इसी कारण कुछ दरबारी बीरबल से जलते थे। वे बीरबल को मुसीबत में फँसाने के तरीके सोचते रहते थे। अकबर के एक खास दरबारी ख्वाजा सरा को अपनी विद्या और बुद्धि पर बहुत अभिमान था। बीरबल को तो वे अपने सामने निरा बालक और मूर्ख समझते थे। लेकिन अपने ही मानने से तो कुछ होता नहीं! दरबार में बीरबल की ही तूती बोलती और ख्वाजा साहब की बात ऐसी लगती थी जैसे नक्कारखाने में तूती की आवाज़। ख्वाजा साहब की चलती तो वे बीरबल को हिंदुस्तान से निकलवा देते लेकिन निकलवाते कैसे! एक दिन ख्वाजा ने बीरबल को मूर्ख साबित करने के लिए बहतु सोचे -विचार कर कुछ मुश्किल प्रश्न सोच लिए। उन्हें विश्वास था कि बादशाह के उन प्रश्नों को सुनकर बीरबल के छक्के छूट जाएँगे और वह लाख कोशिश करके भी संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाएगा। फिर बादशाह मान लेगा कि ख्वाजा सरा के आगे बीरबल कुछ नहीं है। ख्वाजा साहब अचकन-पगड़ी पहनकर दाढ़ी सहलाते हुए अकबर के पास पहुँचे और सिर झुकाकर बोले, "बीरबल बड़ा बुद्धिमान बनता है। आप भी उसकी लंबी-चौड़ी बातों के ध...
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